फिरोजाबाद: आकिंचन मन हर चीज को अपना कहने के भाव को समाप्त करने की प्रक्रिया है
-दशलक्षण पर्व पर आकिंचन धर्म की आराधना हुई
फिरोजाबाद। दशलक्षण महापर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना की गई। जिनभक्तों ने हर्षोल्लास के साथ धर्म का वाचन किया। जैन मंदिरों में श्रीजी के जयकारों की धूम रही।
नगर के 40 जैन मंदिरों में दशलक्षण पर्व के नौवें दिन मंत्रोच्चारण के मध्य घंटा घड़ियाल की मधुर ध्वनि के बीच प्रातः मन्त्रोंच्चारण के साथ श्री जी का जिनाभिषेक एवं वृहद शांतिधारा सम्पन्न हुई। दशलक्षण धर्म पूजा, रत्नत्रय पूजा, के पश्चात् आकिंचन धर्म की स्थापना की तथा श्री जी के सम्मुख अर्घ्य समर्पित किये।
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शान्तिनाथ दिगम्बर जैन इन्द्रा कॉलोनी में जिनभक्तों द्वारा भक्तामर विधान का आयोजन किया। विधान के पश्चात् जिनभक्तों ने भक्तामर के 48 अघ्र्य समर्पित किये। चंद्रप्रभु जैन मंदिर में शास्त्री सौरभ जैन ने कहा कि उत्तम अंकिंचन धर्म जैन धर्म के दस दशलक्षणों में से एक है। जिसका अर्थ है सर्वोच्च अनासक्ति या अपरिग्रह. यह आत्मा को भौतिक वस्तुएं, रिश्ते और मोह-माया से पूरी तरह मुक्त करके त्याग और संतोष के माध्यम से आंतरिक शुद्धि और परम शांति प्राप्त करने का अभ्यास है।
उन्होंने कहा कि यह केवल बाहरी वस्तुओं का त्याग नहीं, बल्कि अपना-अपना के आंतरिक भाव का भी त्याग करना है। यह मन से हर चीज को अपना कहने के भाव को समाप्त करने की प्रक्रिया है। यह साधना का चरम रूप है, जो आत्मा के स्वरूप का ज्ञान होने पर प्राप्त होता है।
सांयकालीन संगीतमय सामूहिक महाआरती तथा अनेकों धार्मिक कार्यक्रम हुए। 6 सितंबर को दशलक्षण महापर्व का अंतिम दिन होगा। जिनालयों में उत्तम ब्रह्मचर्य की पूजा आराधना होगी। यह जानकारी आदीश जैन ने दी है।
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