उत्तर प्रदेश, लखनऊ। पल भर में बदलने वाली दुनिया में, जहाँ बेटियों के शिक्षा और सशक्तिकरण की माँग हर दिन बढ़ रही है, वहाँ “मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना” एक नई उम्मीद की किरन बनकर उभरी है। इस योजना की शुरुआत से लेकर अब तक हजारों परिवारों की ज़िंदगी में सहज परिवर्तन देखने को मिला है। हम बात कर रहे हैं उन घरों की, जहाँ नन्हीं बच्चियों के आने से पहले तक शिक्षा और आर्थिक सुरक्षा को लेकर असमंजस की हवा बहती थी, और अब उसी हवा में उम्मीदों के पतंग उड़ने लगे हैं।
पहली मुस्कान में विश्वास की दस्तक
रिपोर्टर जब गाँव-गाँव, शहर-शहर घूमता है, तो हर घर की दहलीज़ पर एक ही सवाल गूँजता है—“बेटी की पढ़ाई का खर्च कैसे पूरा होगा?” इसी सवाल का जवाब उत्तर प्रदेश सरकार ने “मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना” के रूप में दिया। योजना के तहत बेटी के जन्म के समय मिलते पाँच हजार रुपये, किसी पारंपरिक उपहार से बढ़कर होते हैं। जब नन्हीं परी की पहली चिलमन पर माँ की आँखें चमक उठती हैं, तब यह राशि केवल पैसों का संग्रह नहीं, बल्कि उनके सपनों की पहली ईंट बन जाती है।
हमने जिले के एक स्कूल में बात की पुष्पा देवी से—जो अपनी 12 वर्षीय बिटिया सेठिया को बोर्ड की तैयारी में जुटा रही हैं। पुष्पा देवी बताती हैं, “जब मेरी बेटी पहली कक्षा में दाखिला लेने गई, तो मुझे किताबों-पेंसिलों के खर्च की चिंता सताती थी। लेकिन योजना के दो हजार रुपये ने उस बोझ को हल्का कर दिया।” इस तरह, जन्म से लेकर चौथी-पाँचवीं कक्षा तक, सरकार की ओर से परिवुभिन्न जरूरतों के हिसाब से राशि मिलती रही—जिससे लाखों परिवारों ने राहत की साँस ली।
रिपोर्टर दल ने वाराणसी के एक सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा के छात्र राहुल से भी बातचीत की। राहुल ने बताया, “जब मैंने दसवीं बोर्ड की तैयारी शुरू की, तब तीन-तीन हजार रुपये की सहायता मिली। उस पैसे से मैंने कोचिंग की फीस और किताबें खरीदीं। अगर यह योजना न होती, तो शायद मैं प्रतिस्पर्धा की दौड़ में पीछे रह जाता।” इसी तरह, 9वीं-10वीं कक्षा में मिलने वाली इस आर्थिक सहायता ने बच्चों के मनोबल को बढ़ाया और परिवारों को यह विश्वास दिलाया कि शिक्षा में रुकावट नहीं आने दी जाएगी।
बारहवीं पास करने के बाद कॉलेज में दाखिला लेने की घड़ी आती है—जहाँ फीस, नामांकन शुल्क, लाइब्रेरी चार्जेज़ जैसी खर्चियाँ परिवारों को तनाव में डाल देती हैं। यहाँ योजना की सात हजार रुपये की मदद परिवारों के लिए वरदान साबित होती है। लखनऊ की युवती प्रिया कहती हैं, “कॉलेज की सीट मिलने के बाद जब सात हजार रुपये की राशि आई, तो मैंने अपनी मनपसंद विषय में दाखिला लेने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की।” यही नहीं, कॉलेज के पहले सेमेस्टर में पाँच हजार रुपये और मिलने से प्रिया ने रेफ्रिजरेटर वाले हॉस्टल में एडमिशन लिया और अब वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है।
योजनाकारों का कहना है कि इस योजना का उद्देश्य केवल आर्थिक मदद करना नहीं, बल्कि बेटियों को प्रेरित कर उनकी शिक्षा और आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करना भी है। प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी, श्री अमित त्रिवेदी, कहते हैं, “हम हर बेटी के सपने को पंख देना चाहते हैं। इस योजना के माध्यम से हम सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी बच्ची आर्थिक कारणों से अपनी शिक्षा न छोड़ पाए।” हालांकि, अधिकारी ने यह भी स्वीकार किया कि योजना की जागरूकता और डिजिटल पोर्टल की सुगमता पर और काम करने की आवश्यकता है, ताकि दूर-दराज के इलाकों में भी इसका लाभ पहुंचे।
आवेदन प्रक्रिया: सरल
योजना के लाभार्थियों को ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कर फॉर्म भरने की सुविधा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में CSC केंद्रों पर ऑफलाइन आवेदन की व्यवस्था भी है। दस्तावेज़ीकरण के दौरान पहचान-पते के प्रमाण, आय प्रमाण पत्र और जन्म प्रमाण पत्र जैसी जरूरी कागज़ात जमा करने होते हैं। कुछ परिवारों ने बताया कि गांवों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और बेसिक डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण आवेदन में मुश्किलें आईं, लेकिन नजदीकी CSC केंद्र से मार्गदर्शन मिलने पर वे प्रक्रिया पूरी कर सकें।
यह रिपोर्टर दल जब ज़मीनी हकीकत देखने निकला, तो पाया कि योजना ने न केवल आर्थिक बोझ कम किया, बल्कि बेटियों के मनोबल को भी बढ़ाया है। अनेक माता-पिता अब अपनी बेटियों को घर के कामों से मुक्त कर उन पऱ जोर देने लगे हैं कि वे आगे पढ़कर अपने और परिवार का नाम रोशन करें। इस योजना ने समाज में शिक्षा के महत्व को फिर से पुष्टि की है।
जहां योजना ने अभी तक करोड़ों बेटियों के उज्जवल कल की नींव रखी है, वहीं सरकार आगे भी इसके दायरे का विस्तार करने की योजना बना रही है—विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों और पिछड़े क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाकर। इस योजना के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार ने यह संदेश दिया है कि बेटी की शिक्षा में हर रुपया, हर प्रयास मायने रखता है।